ग़ज़ल

1 حصہ

227بار پڑھیں

22 پسند کیا

*ग़ज़ल* तुम जहाँ हम वहाँ से दूर नहीं। अपनी मंजिल निशाँ से दूर नहीं।  ये अलग जिंदगी अभी चुप है। आईना हक बयाँ से दूर नहीं। किस कदर बढ़ गयी है ...

×